कुछ सवाल संघियों से .
भारत माता का जन्म कब हुआ ??
आज़ादी से पहले या बाद में ??
शेर की सवारी कब की??
तुम्हारी अन्य देवीयों के समान अगर भारत माता भी शक्तिशाली थी, तो मुगलों और अग्रेजों को क्यों नहीं भगा पायी??
➡चलो तुम्हारी बात मान लेते है, लेकिन भारत माता के हाथ में #भगवा_झंडा क्यों है… राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा क्यों नहीं है?
ये लोचा कुछ समझ नहीं आया ???
#जय_भारत #मेरा_भारत_महान
लेखक: भूरसिंह मीणाणा
आखिर भारत माता कौन है? मुझे भी समझ नहीं आया। स्कुल कॉलेज में अनजाने में कभी भारत माता की जय बोला भी होगा तब भी इसके बारे में कोई ज्ञान नहीं था कि भारत माता कौन है?
अब जब थोडा इसके बारे में पढ़ा तो पता चला कि भारत माता शब्द प्रचलन में नहीं था, प्रचलित शब्द था माँ भारती और माँ शक्ति। फ़ोटो यही था, पहनावा भी यही था, बस बैकग्राउंड में भारत का नक्शा नही था। तो ये नक्शा कब जोड़ा गया?
भारत माता की जय बोल देने में कुछ नहीं जाता, मगर बोलने से क्या मिल जाएगा? भूखे को रोटी नहीं मिलेगी, किसान को कर्ज से मुक्ति नहीं मिलेगी, जातिवाद के शिकार को बराबरी का मौका नहीं मिलेगा। और फिर वही पुरानी बात कि ब्राह्मणवादियों संघियों को देशभक्ति के प्रमाण पत्र बांटने का ठेका कब और किसने दिया?
फिर इस फ़ोटो में खड़ी औरत के हाथ में ही भारत का झंडा नहीं है तो ये औरत ही देशद्रोही सी लगती है। एक सवाल ये भी है कि देश स्त्री है या नहीं? क्या देशवासी होने के नाते मुझे इन सवालो के जवाब जानने का अधिकार नहीं है?
झाबुआ बलात्कार कांड को भी याद कीजिये, नन के साथ बलात्कार करते हुए बलात्कारियों ने भारत माता की जय के नारे लगाये थे। भले ही नारो वाली बात को दबा दिया गया पर ननो का बलात्कार तो मेडिकल रिपोर्ट से प्रमाणित हुआ।
नए नए देशभक्त बने संघ की विचारधारा का समर्थन न करना वास्तव में सही देशभक्ति है। अंधभक्ति में लोग लीन होकर खड्डे में ही गिरते है। जैसे आसाराम के भक्त, रेप करवाने के बाद ही होश में आये। तो संघ के चक्कर में अपना बलात्कार न करवाएं। देश में पैदा हुए सभी लोगो को देश से प्यार होता है। जो भी नफरत है वो धर्मो के बीच है और धर्मो के द्वारा ही पैदा की गई है।
अपनी सोच का इस्तेमाल करें।
ये भी सोचिये कि एक के बाद एक नए नए कांड सामने आ रहे है या यूँ कहे कि लाये जा रहे है, कहीं ये #रोहित_वेमुला से लोगो का ध्यान भटकाने और दोषियों को बचाने की साजिश तो नहीं है।
नोट-उक्त लेख ‘बृजेश चौधरी कक्का’ की फेसबुक पोस्ट से लिया गया है, लेख में लेखक के अपने निजी विचार हैं ‘तीसरी जंग’ इनका कोई समर्थन नहीं करता।